Snake myths and truth: नागिन का बदला सच है या सिर्फ अंधविश्वास? जानें सांपों से जुड़े मिथकों की सच्चाई

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Snake myths and truth: भारत में सांप हमेशा से रहस्य और आस्था का प्रतीक रहे हैं। प्राचीन ग्रंथों से लेकर धार्मिक मान्यताओं तक, नागों का उल्लेख हर जगह मिलता है। भगवान शिव के गले का नाग हो या भगवान विष्णु की शेषनाग शैय्या, दोनों ही सांपों की पौराणिक महत्ता को दर्शाते हैं।

यही कारण है कि देश भर में नागपंचमी जैसे पर्व मनाए जाते हैं और नागों को पूजा जाता है। लेकिन, सदियों से इन सर्पों के बारे में कई ऐसी कहानियाँ भी गढ़ी गईं, जो वास्तविकता से बिल्कुल अलग हैं। आइए जानते हैं कि इन मान्यताओं में कितना सच है और विज्ञान क्या कहता है।

पौराणिक ग्रंथों में सांपों का महत्व

हिंदू धर्म में सांपों को शक्ति, सुरक्षा और भय का प्रतीक माना गया है। पुराणों और महाभारत जैसी कथाओं में शेषनाग, वासुकी और तक्षक जैसे नागों का विशेष उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि शेषनाग अपने फण पर संपूर्ण पृथ्वी को धारण किए हुए हैं। वहीं नागपंचमी के दिन महिलाएं विशेष रूप से नाग देवता की पूजा करती हैं और परिवार की रक्षा की कामना करती हैं।

धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ लोककथाओं ने भी सांपों को अलौकिक शक्तियों वाला प्राणी बना दिया। यही कारण है कि समय के साथ कई तरह की अफवाहें और मिथक प्रचलित हो गए।

मिथक 1: सांप दूध पीते हैं

हर तरफ यह धारणा फैली हुई है कि सांप दूध पीते हैं। नागपंचमी पर कई जगहों पर लोग नाग को दूध चढ़ाते हैं। लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि सांप मांसाहारी जीव हैं और वे मेंढ़क, चूहे, छिपकली और पक्षियों को खाते हैं। उनके पाचन तंत्र में दूध को पचाने की क्षमता ही नहीं होती।

दरअसल, नागपंचमी पर जब सांपों को पकड़कर दूध पिलाया जाता है, तो वे पानी की प्यास बुझाने के लिए दूध के कुछ घूँट पी सकते हैं। यही कारण है कि लोग इसे दूध पीना मान लेते हैं।

मिथक 2: नागमणि का अस्तित्व

लोककथाओं और फिल्मों में अक्सर देखा गया है कि सांप के सिर पर चमकती हुई नागमणि होती है। कहा जाता है कि यह रत्न अमूल्य होता है और इसके पास रहने से अपार संपत्ति मिल सकती है।

लेकिन वैज्ञानिक रूप से नागमणि जैसी कोई चीज़ अस्तित्व में नहीं है। सांपों की किसी भी प्रजाति के सिर पर रत्न जैसी कोई संरचना नहीं होती। यह सिर्फ कल्पना और लोककथाओं का हिस्सा है।

मिथक 3: सांप बदला लेते हैं

फिल्मों और किस्सों में यह धारणा बहुत प्रचलित है कि अगर कोई इंसान सांप को मार दे तो उसका जोड़ा या साथी उस व्यक्ति को पहचान लेता है और बदला लेने के लिए पीछा करता है।

हकीकत यह है कि सांप का मस्तिष्क इतना विकसित नहीं होता कि वह किसी इंसान के चेहरे या जगह को पहचान सके। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि सांपों की स्मृति बहुत सीमित होती है और वे केवल शिकार और खतरे को पहचानने भर में सक्षम हैं। इसलिए बदला लेने का सवाल ही पैदा नहीं होता।

मिथक 4: सांप की आंखों में कैद हो जाती है तस्वीर

गांवों और फिल्मों में यह भी कहा जाता है कि मरते समय सांप अपनी आंखों में कातिल की तस्वीर कैद कर लेते हैं। बाद में साथी नागिन उस तस्वीर को देखकर बदला लेती है।

यह पूरी तरह अंधविश्वास है। सांप की आंखों में किसी कैमरे की तरह छवि सुरक्षित करने की क्षमता नहीं होती। वास्तव में, सांप की दृष्टि बहुत कमजोर होती है और वे ज्यादातर अपनी जीभ और सूंघने की क्षमता पर निर्भर रहते हैं।

मिथक 5: सांप करते हैं इंसानों का पीछा

अक्सर लोग कहते हैं कि अगर किसी ने सांप को परेशान किया या मार दिया, तो उसका साथी दूर-दूर तक पीछा करेगा। सच्चाई यह है कि सांप इंसानों में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं रखते। वे केवल शिकार या आत्मरक्षा की स्थिति में हमला करते हैं। आमतौर पर सांप इंसान को देखते ही भाग जाना पसंद करते हैं।

सांपों को लेकर क्या कहता है विज्ञान

  • स्मृति क्षमता: सांप बहुत कम समय तक ही चीजें याद रख पाते हैं।
  • खाद्य आदतें: वे शुद्ध मांसाहारी हैं और दूध जैसी चीजें नहीं खाते।
  • दृष्टि: ज्यादातर प्रजातियों की नजर कमजोर होती है। वे शिकार को जीभ और गंध से पहचानते हैं।
  • व्यवहार: सांप प्रतिशोधी जीव नहीं हैं। वे केवल अपनी सुरक्षा के लिए फुफकारते या काटते हैं।

सांपों से जुड़े डर और वास्तविक खतरे

भारत में सांप काटने से हर साल हजारों मौतें होती हैं। लेकिन यह मौतें अंधविश्वास के कारण नहीं, बल्कि सांप के जहर की वजह से होती हैं। देश में लगभग 300 प्रजातियों के सांप पाए जाते हैं, जिनमें से केवल कुछ ही जहरीले होते हैं, जैसे-

  • कोबरा
  • करैत
  • रसेल वाइपर
  • सॉ-स्केल्ड वाइपर

इन्हें ही बिग फोर कहा जाता है। यही सांप ज्यादातर मौतों के लिए जिम्मेदार होते हैं।

अंधविश्वास में ले लेते हैं जान

सांपों के बारे में फैली झूठी धारणाओं के कारण लोग या तो उन्हें बेवजह पूजते हैं या बिना कारण मार डालते हैं। अंधविश्वास की वजह से कई बार लोग सांप काटने के बाद इलाज कराने की बजाय झाड़-फूंक करवाते हैं, जिससे जान भी चली जाती है। यदि लोग विज्ञान और तथ्यों को समझे और झूठे मिथकों पर भरोसा न करें तो यह स्थिति नहीं बनेगी।

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Uttam Malviya

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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