देशभर के करोड़ों सरकारी कर्मचारी और पेंशनभोगी पिछले कई महीनों से 8वें वेतन आयोग (8th Pay Commission) की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं। कर्मचारियों की उम्मीद थी कि 2025 खत्म होने से पहले सरकार आयोग की नींव रख देगी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ। केंद्र सरकार की चुप्पी ने कर्मचारियों की बेचैनी और बढ़ा दी है। सूत्र बताते हैं कि इस देरी के पीछे कई प्रशासनिक और आर्थिक वजहें हैं, जिनके चलते 8वें वेतन आयोग का गठन फिलहाल अटक गया है।
वेतन आयोग क्यों है महत्वपूर्ण
सरकारी नौकरी करने वाले हर वर्ग की तनख्वाह का ढांचा वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर तय होता है। यह आयोग हर 10 साल में गठित किया जाता है, जो कर्मचारियों की बेसिक पे, ग्रेड पे, भत्ते, पेंशन और अन्य सुविधाओं में बदलाव की सिफारिश करता है। 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद लाखों कर्मचारियों की आय में बढ़ोतरी हुई थी। इसी वजह से अब सभी की निगाहें 8वें आयोग पर टिकी हैं, ताकि उनकी तनख्वाह और पेंशन में सुधार हो सके।
अभी तक तय नहीं हुआ कार्यक्षेत्र (ToR)
वेतन आयोग की प्रक्रिया केवल घोषणा तक सीमित नहीं होती। सरकार को आयोग बनाने के साथ-साथ उसके कामकाज का दायरा भी तय करना पड़ता है, जिसे “टर्म ऑफ रेफरेंस (ToR)” कहा जाता है। इसमें यह निर्धारित किया जाता है कि आयोग किन विषयों का अध्ययन करेगा और किस तरह का नया ढांचा तैयार करेगा। फिलहाल, सरकार इस ToR को अंतिम रूप देने में पीछे रह गई है। यही वजह है कि आधिकारिक गठन आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
आर्थिक बोझ से सरकार सावधान
8वें वेतन आयोग की घोषणा में सबसे बड़ी बाधा बजटीय दबाव है। 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने के बाद केंद्र सरकार पर हजारों करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ा था। इस बार स्थिति और चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर पहले से ही कई दबाव हैं– जैसे सामाजिक योजनाओं का खर्च, इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश और वैश्विक आर्थिक मंदी का असर। ऐसे में सरकार फिलहाल किसी भी ऐसे कदम से बच रही है जिससे राजकोष पर बड़ा बोझ पड़े।
नया वेतन ढांचा तैयार करने में कठिनाई
कर्मचारियों की संख्या बड़ी है और उनके अलग-अलग वर्ग हैं। केंद्र सरकार ने कुछ विभागों और कर्मचारी संगठनों से सुझाव लेना शुरू कर दिया है, लेकिन सभी पक्षों को शामिल कर एक संतुलित मॉडल तैयार करना आसान नहीं है। आयोग का काम सिर्फ तनख्वाह बढ़ाना नहीं होता, बल्कि ऐसा स्ट्रक्चर बनाना होता है जो लंबे समय तक टिकाऊ भी रहे। इसी प्रक्रिया में समय ज्यादा लग रहा है।
कर्मचारियों की लगातार बढ़ती नाराजगी
जैसे-जैसे समय बीत रहा है, कर्मचारियों के बीच नाराजगी का माहौल बढ़ता जा रहा है। कर्मचारियों को भरोसा था कि 2026 तक उनका नया वेतन ढांचा लागू हो जाएगा, लेकिन हालात देखते हुए लगता है कि यह प्रक्रिया और लंबी खिंच सकती है। कई संगठनों ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि जब महंगाई लगातार बढ़ रही है तो कर्मचारियों की आय में सुधार किए बिना उनकी जीवनशैली बनाए रखना मुश्किल होगा।
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पेंशनभोगियों को भी सता रही है चिंता
8वें वेतन आयोग का असर सिर्फ नौकरी कर रहे कर्मचारियों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पेंशनभोगियों की आय पर भी पड़ता है। पेंशन हर वेतन आयोग के बाद संशोधित होती है। लाखों सेवानिवृत्त कर्मचारी इस इंतजार में हैं कि उनकी पेंशन में भी बढ़ोतरी हो, जिससे बढ़ती महंगाई से राहत मिले। आयोग में देरी का सीधा नुकसान इस वर्ग को भी झेलना पड़ रहा है।
राजनीतिक पहलू भी अहम
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस मुद्दे का एक राजनीतिक पहलू भी है। आने वाले चुनावों को देखते हुए सरकार बड़े वित्तीय फैसलों को लेकर सतर्क है। अगर आयोग जल्दी गठित कर दिया गया तो विपक्ष आर्थिक बोझ और कर्ज बढ़ने जैसे मुद्दों को उठाकर सरकार को घेर सकता है। इसी वजह से सरकार फिलहाल इंतजार करने की रणनीति अपना रही है।
कर्मचारी संगठनों की यह हैं मांगें
विभिन्न कर्मचारी संगठन लगातार सरकार से आयोग की घोषणा की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि 7वें वेतन आयोग के बाद जीवन-यापन की लागत कई गुना बढ़ गई है। महंगाई भत्ता (DA) भले ही समय-समय पर बढ़ाया जा रहा है, लेकिन बेसिक सैलरी में संशोधन किए बिना कर्मचारियों की आय स्थिर नहीं हो पा रही। संगठनों का तर्क है कि अगर आयोग समय पर बनता है तो कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और उनका मनोबल भी बढ़ेगा।
लम्बा इंतजार करना ही होगा
फिलहाल संकेत यही हैं कि सरकार जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाएगी। पहले ToR को अंतिम रूप दिया जाएगा, फिर आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति होगी। उसके बाद ही सिफारिशों की प्रक्रिया शुरू हो पाएगी। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर अगले साल तक आयोग का गठन हो भी गया, तो उसकी रिपोर्ट आने और उसे लागू करने में 1 से 2 साल और लग सकते हैं।
8वें वेतन आयोग को लेकर कर्मचारियों की उम्मीदें लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन हकीकत यह है कि पूरी प्रक्रिया अभी शुरुआती दौर में ही अटकी हुई है। बजटीय दबाव, प्रशासनिक तैयारी और राजनीतिक रणनीति – ये तीन कारण हैं जिनकी वजह से आयोग की घोषणा टलती जा रही है। कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को शायद और कुछ समय इंतजार करना पड़े।
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