Mahashivratri 2025: 60 साल बाद बन रहा दुर्लभ संयोग, जानें इस शुभ दिन की खासियत और मान्यतायें

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Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो भगवान शिव की आराधना और उनके अलौकिक स्वरूप का उत्सव है। यह पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 26 फरवरी 2025 को है।

महाशिवरात्रि से जुड़ी प्रमुख मान्यताएँ

  • रुद्र अवतार: कहा जाता है कि इसी दिन मध्यरात्रि में भगवान शिव ने ब्रह्मा से रुद्र रूप में अवतार लिया।
  • तांडव नृत्य: एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने इस दिन तांडव नृत्य करते हुए अपनी तीसरी आँख खोली और उसकी ज्वाला से सृष्टि का संहार किया।
  • शिव-पार्वती विवाह: कई स्थानों पर यह दिन शिव और पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है।

पूजा विधि और अभिषेक सामग्री

महाशिवरात्रि के दिन भक्तगण व्रत रखते हैं और शिवलिंग का विशेष पूजन करते हैं। शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक किया जाता है। बिल्वपत्र, धतूरा, अबीर, गुलाल, बेर और ऊँबी आदि भगवान शिव को अर्पित किए जाते हैं। कहा जाता है कि भांग भगवान शिव को प्रिय है, इसलिए कुछ लोग उन्हें भांग भी चढ़ाते हैं।

60 वर्षों बाद दुर्लभ संयोग

इस वर्ष महाशिवरात्रि पर एक दुर्लभ संयोग बन रहा है। 26 फरवरी 2025 को सूर्य, बुध और शनि तीनों ग्रह कुंभ राशि में एक साथ होंगे। ऐसा संयोग पिछली बार 1965 में बना था। साथ ही, चंद्रमा मकर राशि में स्थित होगा, जो इस दिन को और भी विशेष बनाता है।

शिव की प्राप्ति का मार्ग

भगवान शिव को निर्गुण और निराकार माना जाता है। जब व्यक्ति भौतिक सुखों से विरक्त होकर इंद्रियों के परे जाता है, तब उसे शून्यता का अनुभव होता है। इस शून्यता से भी परे जाकर, ध्यान और साधना के माध्यम से शिव की अनुभूति होती है। महाशिवरात्रि का पर्व इसी आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक है, जहाँ भक्तजन भक्ति और आनंद के साथ शिव की आराधना करते हैं।

(नोट: यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। किसी भी आध्यात्मिक या धार्मिक क्रिया से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।)

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