वास्तु शास्त्र में भूमि का विशेष महत्व है, क्योंकि भूमि की ऊर्जा व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे नौकरी और व्यवसाय, को प्रभावित कर सकती है। यदि भूमि में नकारात्मक ऊर्जा हो, तो यह जीवन में कई समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है।
भूमि की ऊर्जा की पहचान कैसे करें
- जल परीक्षण: भूमि में एक गड्ढा खोदकर उसे पानी से भरें। फिर, पूर्व दिशा की ओर 100 कदम चलें। यदि गड्ढे में पानी पूरा भरा रहे, तो भूमि अत्यंत शुभ है। यदि आधा रह जाए, तो भूमि मध्यम फलदायी है। यदि पानी पूरी तरह सूख जाए, तो भूमि अशुभ मानी जाती है।
- मिट्टी का रंग: यदि भूमि की मिट्टी पीली या सफेद हो, तो इसे श्रेष्ठ माना जाता है। लाल रंग की मिट्टी मध्यम और काली मिट्टी दोषपूर्ण मानी जाती है।
भूमि दोष के प्रभाव
- नौकरी में बाधाएँ आ सकती हैं।
- व्यवसाय में हानि हो सकती है।
- आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है।
- मानसिक तनाव हो सकता है।
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भूमि दोष से बचने के उपाय
- अपने घर या कार्यस्थल को ऐसी जगह न बनाएं या खरीदें, जहाँ उत्तर-पूर्व दिशा में ऊँची इमारत, पहाड़ या पीपल का पेड़ हो।
- जिस भूखंड पर भवन बनाना है, वहाँ कुछ दिनों के लिए गाय और बछड़े रखें। उनके गोबर और मूत्र से भूमि शुद्ध होती है।
- भवन के लिए भूमि खरीदते समय ध्यान रखें कि उसके दक्षिण-पश्चिम में गड्ढे, तालाब या नदियाँ न हों। ऐसी जगह धन की हानि का कारण बनती है।
- जिस भूमि पर कई छोटे गड्ढे हों, वह वास्तु के अनुसार अशुभ मानी जाती है। ऐसी भूमि को त्यागना उचित है।
- जिस भूमि पर आग जल्दी न जले या जलने के बाद बुझ जाए, वह फलदायी नहीं होती। जिस भूमि पर खड़े होने पर मन में बेचैनी या चिंता हो, वह भूमि भाग्य का नाश करती है।
- कई बार भूखंड पर बहुत पुराने पेड़ होते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, ऐसा भूखंड निवास के लिए अनुपयुक्त होता है।
- जिस भूमि की नींव खोदने पर सोना, चांदी, धन, रत्न या अन्य रत्न मिलें, वह अत्यंत शुभ और उत्कृष्ट फल देती है। इसके विपरीत, यदि कोयला और हड्डियाँ मिलें, तो वह भूमि अशुभ मानी जाती है।
इन उपायों को अपनाकर भूमि दोष से बचा जा सकता है और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त की जा सकती है।