Oil production: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोटापे पर नियंत्रण के लिए खाद्य तेलों की खपत में 10 प्रतिशत की कमी का आह्वान किया है। इस संदर्भ में, देश में तिलहन उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों पर भी चर्चा हो रही है। वर्तमान में, भारत अपनी खाद्य तेल की कुल मांग का केवल 43 प्रतिशत ही घरेलू उत्पादन से पूरा कर पाता है, जबकि शेष 57 प्रतिशत के लिए आयात पर निर्भर है। हर साल 150 लाख टन से अधिक खाद्य तेल का आयात किया जाता है, जो दालों के बाद सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है।
इस चुनौती से निपटने के लिए, केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन के तहत, वर्ष 2030-31 तक तिलहन की आवश्यकता का लगभग 72 प्रतिशत घरेलू उत्पादन करने का लक्ष्य है। इसके लिए, तिलहन की खेती के क्षेत्रफल में वृद्धि की जा रही है और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ाकर तिलहन की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
उन्नत बीज और तकनीकी सहायता प्रदान की जा रही है, जिससे तिलहन उत्पादन में वृद्धि हो सके। इस मिशन के लिए अगले छह वर्षों में 10,103 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसके अलावा, 2021 में पाम तेल की खेती को बढ़ावा देने के लिए 11,040 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई थी। पिछले वर्ष, देश में 390 लाख टन तिलहन का उत्पादन हुआ था, जिसे 2030-31 तक 697 लाख टन तक बढ़ाने का लक्ष्य है। सरकार का मानना है कि इससे घरेलू मांग का लगभग 72 प्रतिशत पूरा किया जा सकेगा।
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हालांकि, तिलहन उत्पादन में वृद्धि के बावजूद, आयात पर निर्भरता अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। उच्च तापमान के कारण किसानों ने सरसों की बजाय गेहूं और आलू जैसी फसलों की ओर रुख किया है, जिससे सरसों की बुवाई में कमी आई है। इससे खाद्य तेलों की घरेलू आपूर्ति पर प्रभाव पड़ सकता है और आयात में वृद्धि की संभावना है। इसके अलावा, सोयाबीन की कीमतों में गिरावट के कारण किसानों को नुकसान हो रहा है, जिससे सरकार ने मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसानों से सोयाबीन की खरीद का निर्णय लिया है। इन चुनौतियों के बावजूद, सरकार तिलहन उत्पादन बढ़ाने और खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है।