लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल) (Juna Akhara Ka Itihas)। प्रयागराज में इन दिनों महाकुंभ चल रहा है। महाकुंभ में साधु-संतों के अखाड़े भी लाखों साधुओं के साथ शामिल हुए हैं। संगम की रेती पर देश के प्रमुख 13 अखाड़ों के साथ साधु-संत अपना बसेरा बना चुके हैं। महाकुंभ में अखाड़ों की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। महाकुंभ अखाड़ों के बिना अधूरा है। महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र नागा साधु और उनके अखाड़े ही हैं। हर कोई नागाओं की रहस्यमयी दुनिया और उनकी जीवनशैली के बारे में जानना चाहता है।
लोग जानना चाहते हैं कि महांकुभ के बाद नागाओं का ठिकाना कहां रहता है। साथ ही लोग ये भी जानना चाहते हैं कि नागा साधुओं के कितने अखाड़े हैं। ये अखाड़े अपना इष्टदेव किसे मानते हैं। महाकुंभ में तीन प्रकार के अखाड़े हैं: शैव अखाड़ा जो भगवान शिव की परंपरा अनुसार चलता है। वैष्णव अखाड़ा, जिसमें भगवान विष्णु द्वारा बताये गए मार्ग का अनुसरण किया जाता है और उदासीन अखाड़ा जिसमें साधु-संतों द्वारा भगवान शिव के प्रतीक ‘ॐ’ की पूजा होती है।
सबसे बड़ा जूना पंचदशनाम जूना अखाड़ा
यह हिंदू धर्म के सबसे पुराने और प्रमुख अखाड़ों में से एक है। इस अखाड़े के बारे में कहा जाता है कि इनके जत्थे में साढ़े पांच लाख नागा साधु हैं। मुगलों से लोहा लेने वाला जूना अखाड़े का एक हजार साल पुराना इतिहास है। अखाड़े में हथियारों से लैस नागा साधुओं की फौज है। इस बार के महाकुंभ में करीब पांच हजार नए नागा संन्यासी इस अखाड़े में 29 जनवरी मौनी अमावस्या के दिन दीक्षा ग्रहण करेंगे। जिन्हें राजराजेश्वर नागा कहा जाएगा। इस बार अमृत स्नान की धर्मध्वजा जूना अखाड़े को ही सौंपी गई है। इसीलिए प्रथम अमृत स्नान में सबसे पहले जूना अखाड़ा के संन्यासी ही सोने, चांदी, सिंहासन पर सवार होकर अस्त्र-शस्त्र के साथ राजसी स्नान के लिए निकले थे। शिव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा बताया जाता है। इस अखाड़े में लाखों नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं।
मंदिरों-मठों की रक्षा के लिए मुगलों से लिया लोहा
कहा जाता है कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए जूना अखाड़े ने सबसे बड़ी सेना खड़ी की। इस अखाड़े के नागाओं ने मंदिरों-मठों की रक्षा के लिए मुगलों से लोहा लिया। शस्त्र विद्या में निपुण नागा संन्यासियों ने अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली को आगे बढ़ने से रोका था। ऐसा भी कहा जाता है कि मथुरा-वृंदावन के बाद गोकुल फतह करने के इरादे से अहमद शाह अब्दाली ने कूच किया, लेकिन जूना अखाड़े के नागाओं ने उसके कारवां को आगे नहीं बढ़ने दिया।
जहांगीर को भोंकी थी कटारी
एक कथा ये भी प्रचलित है कि जब प्रयागराज कुंभ मेला था तब वहां मुगल बादशाह जहांगीर आने वाला था। तब साधु संन्यासियों की इतनी क्षमता नहीं थी कि वे उसके खिलाफ सीधा युद्ध लड़ पाएं। ऐसे में वैष्णव और शैव साधुओं ने मिलकर एक पिरामिड बनाया था। यह एक छद्म युद्ध था, जहां पिरामिड पर चढ़कर एक साधु योद्धा ने जहांगीर को जाकर कटारी भोंक दी थी। यह संन्यासी क्रांति का उच्चतम स्वरूप था। भारत की अखंडता ने साधु संतों ने एक सन्यासी सैनिक बनकर अपनी भूमिका निभाई और भारत की क्रांति को जन्म दिया जिसे हम आजादी की प्रथम क्रांति के रूप में जानते हैं।
जूनागढ़ के निजाम को चटाई धूल
जूनागढ़ के निजाम को भी भीषण युद्ध में नागाओं ने धूल चटा दी थी। उन्होंने जंग के दौरान अपने युद्ध कौशल से प्रभावित किया। आखिरकार जूनागढ़ के निजाम को घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा। संन्यासियों के पराक्रम का आलम ये था कि जूनागढ़ के निजाम को संन्यासियों को संधि करने के लिए बुलाना पड़ा।
उत्तराखंड में अखाड़े की स्थापना
जूना अखाड़े की स्थापना उत्तराखंड में हुई है। जूना अखाड़े को भैरव अखाड़े के नाम से भी जाना जाता है। वहीं जूना अखाड़े के इष्टदेव दत्तात्रेय भगवान हैं। इनका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर है। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा का मुख्यालय वाराणसी में स्थित है। कहा जाता है कि सन 1145 में उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में इस मठ की स्थापना के साथ इसको ही पंच दशनामी जूना अखाड़े के रूप में मान्यता दी गई। इन अखाड़ों के संन्यासियों का कार्य जप-तप, साधना, ध्यान, धार्मिक प्रवचन देना और लोगों को धर्म का मार्ग बताना है। वर्तमान में इस अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरी जी महाराज हैं और अध्यक्ष महंत प्रेम गिरि जी महाराज हैं। शिव संप्रदाय के तहत जब इस अखाड़े में शामिल होने के लिए दीक्षा दी जाती है तो दशनामी परंपरा के मुताबिक गिरि, पर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य, तीर्थ और आश्रम को लेकर 10 नाम दिए जाते हैं। अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद सबसे ऊंचा होता है।
अखाड़े में महामंडलेश्वर कौन है
अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद सबसे बड़ा होता है। पंचदशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर अनंतश्री विभूषित पूज्यपाद अवधेशानंद गिरी जी महाराज है। कहा जाता है कि वह अब तक दस लाख संन्यासियों को दीक्षा दे चुके हैं। इनका आश्रम हरिद्वार के कनखल में है। जिससे देश और विदेश के लाखो शिष्य जुड़े हुए हैं। प्रयागराज कुंभ में भी आचार्यश्री का शिविर लगा है। जिसका नाम है “प्रभु प्रेमी संघ कुम्भ शिविर”, सेक्टर – 18, अन्नपूर्णा मार्ग, झूँसी, प्रयागराज। जहाँ वे अपने भक्तों को राम कथा का श्रवण करवा रहे हैं। आचार्यश्री के कुंभ शिविर में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, गृहमंत्री अमित शाह, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सहित आशीर्वाद लेने देश के जाने-माने दिग्गज पहुंच रहे हैं।