शंकर राय, भैंसदेही (बैतूल) (Tomato farming)। किसान इस उम्मीद के साथ कोई भी फसल की बुआई करता है कि इसे बेचकर वह अपने परिवार की जरुरतों को पूरा कर सकेगा। अच्छी फसल तैयार करने वह एक ओर जहां काफी पैसा खर्च करता है वहीं रात-दिन मेहनत भी करता है। इसके विपरीत कई बार ऐसे हालात बन जाते हैं कि फसल से कोई मुनाफा होना तो दूर लागत तक नहीं निकल पाती है।
इसी स्थिति से इन दिनों मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के किसान दो-चार हो रहे हैं। बड़े जतन और उम्मीदों के साथ उन्होंने जिस टमाटर की फसल तैयार की थी, उस फसल को वे मवेशियों को खिलाने को मजबूर हो रहे हैं या फिर खेतों में ही उन्हें नष्ट कर रहे हैं। वजह यह है कि टमाटरों के इतने दाम भी नहीं मिल रहे हैं कि लागत निकलना तो दूर तुड़ाई और बाजार तक उन्हें ले जाने का खर्च भी नहीं निकल रहा है।
खुद ही करना पड़ रहा है फसल बर्बाद
बैतूल जिले में टमाटर उत्पादक किसान इन दिनों केवल और केवल नुकसान झेल रहे हैं। बम्पर उत्पादन, स्टोरेज सुविधाओं का अभाव, जिले और जिले के बाहर मंडियों में मांग की कमी के चलते ऐसे हालात बन गए हैं कि मजबूरी में बड़ी मेहनत से तैयार टमाटर की फसल को किसानों को खुद ही बर्बाद करना पड़ रहा है।
तोड़ने का खर्च भी निकलना हुआ मुश्किल
बैतूल जिले के भैंसदेही ब्लॉक के किसान महादेव ने हर साल की तरह इस साल भी बड़े रकबे में टमाटर लगाए थे। उन्हें उम्मीद थी कि अच्छे दाम मिलने से उन्हें मुनाफा होगा, लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा। मंडियों से टमाटर की मांग नहीं आ रही। जिससे टमाटर खेतों में लगे-लगे सड़ रहे हैं। किसान को इतना भी दाम नहीं मिल रहा कि वो खेतों से टमाटर को तोड़ सके। इसलिए महादेव सहित दूसरे किसान भी खेतों में लगे टमाटर की फसल को जानवरों को खिला रहे हैं।
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बाहर की मंडियों से नहीं आ रही मांग
टमाटर नष्ट करने के अलावा कई किसानों ने टमाटर तोड़कर ट्रकों में भरे और जंगल मे ले जाकर फेंक दिए जहां बंदर और दूसरे जीव-जंतु टमाटरों की दावत उड़ा रहे हैं। बम्पर उत्पादन के बावजूद बैतूल और जिले के बाहर की मंडियों से भी टमाटर की माँग नहीं आ रही जिससे मंडियों में टमाटर के दाम 20 रुपये प्रति कैरेट तक आ चुके हैं।
स्टोरेज सुविधाओं का अभाव बना कारण
इससे पहले बैतूल में पत्तागोभी के दाम 15 से 20 पैसे प्रति किलोग्राम तक आने से सैकड़ों किसानों ने पत्ता गोभी की फसलों को नष्ट किया था। कृषि प्रधान बैतूल जिले में स्टोरेज सुविधाओं का अभाव और बेहतर मार्केटिंग ना होने से हर साल किसान भारी नुकसान झेल रहे हैं। इस ओर जिले के जनप्रतिनिधियों का जरा भी ध्यान नहीं है।