Yellow mosaic disease: मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में पीले सोने की फसल पर यलो मोजेक रोग ने धावा बोल दिया है। इससे खेड़ी सांवलीगढ़ और आसपास के आधा दर्जन गांवों में इस बार सोयाबीन की फसल पूरी तरह चौपट हो चुकी है। बारिश की बेरुखी और पीला मोजैक रोग ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है। इससे किसान परेशान और मायूस हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार खेड़ी सांवलीगढ़, कनारा, पीपलढाना, सराड़, चिचढाना समेत कई ग्रामों के सैकड़ों किसान इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित हुए हैं। किसानों का कहना है कि शुरुआती दिनों में बारिश ठीक-ठाक होने से फसल की बढ़वार बेहतर थी। लेकिन पिछले एक माह से बारिश थमने और सिंचाई की सुविधा न होने से खेतों की नमी खत्म हो गई।
फल्लियों में नहीं आया दाना तक
इससे सोयाबीन की जड़ें सूख गईं और पत्तियों में पीला मोजेक रोग का प्रकोप फैल गया। खेतों में खड़ी हरी-भरी फसल अचानक पीली पड़ने लगी और फल्लियों में दाना तक नहीं आया। इससे उनकी महीनों की मेहनत और बुआई पर खर्च की गई राशि पूरी तरह बर्बाद हो गई है।
अब सरकारी मदद की दरकार
पीड़ित किसान बबलू कावरे और नितिन कावरे का कहना है कि उन्होंने बड़े अरमानों के साथ खेतों में सोयाबीन की बोवनी की थी। अब हालात इतने बिगड़ गए हैं कि पूरी फसल चौपट हो गई है। किसानों को लाखों रुपए की सीधी आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है।
दिख रही हरियाली की जगह बर्बादी
आलम यह है कि जिन खेतों में उम्मीद की फसल लहलहा रही थी, अब वहां सूखी और पीली पड़ी बर्बाद फसल ही नजर आ रही है। अब पीड़ित किसानों को सरकारी मदद का ही सहारा बच गया है। किसानों का कहना है कि वे अब आधी-अधूरी फसल पर ट्रैक्टर चलाने को मजबूर हैं।
भारी क्षति से टूट चुकी है उम्मीदें
खेती से हुई भारी क्षति के चलते किसानों की उम्मीदें टूट चुकी है। वर्तमान हालात में उनका सहारा केवल सरकारी मदद और राहत पर ही टिका हुआ है। पीला मोजैक रोग और बारिश की खेंच ने इस बार किसानों की मेहनत और सपनों दोनों को निगल लिया है।
पीला मोज़ेक रोग: कैसे बचाव करें?
वैज्ञानिक और कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि पीला मोज़ेक सोयाबीन की एक वायरल बीमारी है, जो मुख्य रूप से व्हाइटफ्लाई (Bemisia tabaci) के हाथों फैलती है। येलो मोज़ेक भारतीय रेगिस्तान, राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से जानलेवा रोग है।
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प्रभावी बचाव के तरीके
- प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग: वैज्ञानिक अध्ययन में यलो मोजेक रोग से प्रतिरोधी सोयाबीन किस्मों (जैसे JS 97-52, JS 21-05, RSC 1142) की पहचान की गई है। स्थानीय कृषि विभाग से संपर्क कर ये किस्में उपयोग में लाना लाभदायक होगा।
- कीट नियंत्रण (व्हाइटफ्लाई रोकना): कीटनाशक इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL का 0.25 ml प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव फसल में WHM रोग और व्हाइटफ्लाई की संख्या कम करने में प्रभावी रहा है। 20 और 35 दिन बाद दो बार फ्लोनिकामाइड 50 WG @ 0.03% छिड़कने से व्हाइटफ्लाई की संख्या और YMD रोग में 72% तक कमी आई, और प्रति हेक्टेयर फसल पैदावार 11.83 क्विंटल बढ़ा।
- पीली स्टिकी ट्रैप्स: कीटों को आकर्षित करने के लिए “पीली स्टिकी ट्रैप्स” भी खेत में लगाई जा सकती है, जिससे व्हाइटफ्लाई का प्रसार घटता है।
- संक्रमित पौधों को हटाना: जैसे ही पीले पत्तों के लक्षण दिखें वैसे ही रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए। इससे रोग के संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है।
- समय पर बुवाई करें: शुरुआती बुवाई (अप्रैल-मई) करने से पौधे स्वस्थ विकास करते हैं और व्हाइटफ्लाई का प्रकोप कम होता है। देर से बुवाई फसल को अधिक प्रभावित कर जाती है और बचाव कठिन होता है।
- बीज की गुणवत्ता सुनिश्चित करें: वायरस-मुक्त और प्रमाणित बीज का उपयोग करना बहुत जरूरी है। संक्रमित बीज से रोग का प्रसार बढ़ सकता है।
टीमवर्क से संभव है राहत
कृषि विभाग को विकेंद्रित शिविर— जैसे “रोड शो” या गांव-स्तर पर शिविर चलाकर किसानों को जागरूक करना चाहिए। नि:शुल्क कीटनाशक, प्रतिरोधी बीज और इन तकनीकों का प्रशिक्षण देकर बचाव सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अगर किसान समय रहते इस बीमारी को पहचानें और ऊपर बताई गई तकनीकों का इस्तेमाल करें, तो आने वाले मौसम में फसल बचाई जा सकती है।
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