Ladli Behna Yojana: मध्यप्रदेश से शुरू हुई मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना आज देश की सबसे लोकप्रिय योजनाओं में से एक है। इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि यह योजना एक-एक कर अन्य राज्यों में भी लागू की जा रही है। अब तक कई राज्य इस योजना को लागू कर चुके हैं वहीं जहां यह लागू नहीं हुई है वहां इसे लागू किए जाने की तैयारी चल रही है।
इस योजना से महिला वर्ग को इतना सहारा मिला है कि वे चाहती है कि हमेशा यह योजना चालू रखी जाएं। वहीं जिन महिलाओं के नाम इस योजना से अब तक नहीं जुड़ पाए हैं, वे अपने नाम जोड़ने की निरंतर मांग कर रही है। दूसरी ओर इस महत्वाकांक्षी योजना पर कई लोग सवाल भी खड़े कर रहे हैं। मध्यप्रदेश की तर्ज पर पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र में भी यह योजना शुरू की गई है। वहां इस योजना को मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहीण योजना नाम से चलाया जा रहा है।
इस योजना के औचित्य पर सवाल भी महाराष्ट्र में ही उठाया गया है। महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता अनिल वडापल्लीवार ने इस योजना को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में एक जनहित याचिका दायर की है। हालांकि इस पर सरकार की ओर से हलफनामा (शपथ पत्र) प्रस्तुत कर विस्तृत उत्तर दिया गया है। इसमें इस योजना के औचित्य और योजना को लागू किए जाने के आधार के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।
महाराष्ट्र के वित्त विभाग के संयुक्त सचिव पांडुरंग जाधव ने कोर्ट में जवाब प्रस्तुत करते हुए जानकारी दी है कि मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहीण योजना राजनीतिक लाभ के लिए नहीं बल्कि गरीब महिलाओं के उत्थान के लाई गई योजना है। योजना को शुरू करते समय सरकार ने अलग-अलग पहलुओं पर विचार किया। यह मुख्यत: रोजगार सर्वेक्षण पर आधारित था।
महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार की ओर से कोर्ट में रखे गए पक्ष में कहा गया है कि राज्य में केवल 28 प्रतिशत महिलाएं ही कार्यरत हैं। 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएं बेरोजगारी से पीड़ित हैं। यह केवल 2.5 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों तक सीमित है। सरकारी कर्मचारी और उनके परिवारों को इससे बाहर रखा गया है।
हलफनामे में यह भी कहा गया है कि मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहीण योजना, किसान बिजली सब्सिडी योजना, मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना जैसी कल्याणकारी योजनाएं मतदाताओं को वोट पाने के लिए कुछ मुफ्त देने के बारे में नहीं है बल्कि इन्हें महिलाओं, किसानों और समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के लोगों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए शुरू किया गया है।
ये योजनाएं सरकार के संवैधानिक दायित्वों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुरूप हैं। प्रत्येक योजना में पात्रता मापदंड स्पष्ट कर दिए गए हैं। इस मामले की अगली सुनवाई 7 फरवरी को होना है। संभावना जताई जा रही है कि राज्य सरकार चाहे तो इस सुनवाई में सप्लीमेंट्री हलफनामा दायर कर सकती है। वहीं इस बार सरकार की ओर से स्वयं अटॉर्नी जनरल कोर्ट में प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।