strawberry cultivation : स्ट्रॉबेरी की खेती से किसानों के जीवन में आई मिठास, जमकर हो रही कमाई

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Strawberry cultivation : मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में जब पारम्परिक खेती से आगे बढ़ने की बात आई, तो जनजातीय किसानों ने एक नई दिशा में कदम रखा। जिले के प्रगतिशील किसान रमेश परमार और साथी अन्य किसानों ने अपनी हिम्मत, मेहनत और नवाचार से असंभव को संभव बना दिया है।

पारम्परिक खेती से उद्यानिकी की ओर

जिले के जनजातीय बहुल क्षेत्र में पहली बार स्ट्रॉबेरी की खेती का प्रयोग शुरू हुआ। परम्परागत रूप से ज्वार, मक्का और अन्य सामान्य फसलों के लिए जाने जाने वाले इस इलाके में अब किसानों ने उद्यानिकी फसलों की ओर रुख किया है। जिले के रामा ब्लॉक के तीन गांवों भुराडाबरा, पालेड़ी और भंवरपिपलिया में आठ किसानों के खेतों में स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए गए।

स्ट्रॉबेरी सामान्यतः ठंडे इलाकों की फसल

झाबुआ में, स्ट्रॉबेरी सामान्यतः ठंडे इलाकों की फसल है, को यहां अनुकूलित परिस्थितियों में उगाने का प्रयोग किया गया। महाराष्ट्र के सतारा जिले से 5000 पौधे मंगवाकर हर किसान के खेत में 500 से 1000 पौधे लगाए गए। हर पौधे की कीमत मात्र 7 रुपये थी, लेकिन इसे उगाने की प्रक्रिया ने किसानों को बागवानी की उन्नत और आधुनिक तकनीकों से रूबरू कराया।

ड्रिप और मल्चिंग तकनीक का उपयोग

रोटला गांव के रमेश परमार ने अपने खेत में ड्रिप और मल्चिंग तकनीक का उपयोग कर 1000 स्ट्रॉबेरी पौधे लगाए। वे बताते हैं कि “पहले बाजार में इन फलों को देखा था, लेकिन खरीदने की हिम्मत कभी नहीं हुई। अब जब खुद के खेत में उगाए, तो इसका स्वाद भी चखा और इसकी उच्च कीमत का महत्व भी समझा।”

केवल तीन महीनों में फलों की पैदावार

रमेश ने 8 अक्टूबर 24 को पौधों की बुवाई की थी और केवल तीन महीनों में फलों की पैदावार शुरू हो गई। वर्तमान में बाजार में स्ट्रॉबेरी की कीमत 300 रुपये प्रति किलो है। फिलहाल उन्होंने अपनी पहली फसल घर के सदस्यों और रिश्तेदारों के साथ बांटी है।

अन्य किसानों ने भी अपनाया नवाचार

रमेश अकेले नहीं हैं। उनके साथ अन्य किसान भंवरपिपलिया के लक्ष्मण, भुराडाबरा के दीवान, और पालेड़ी के हरिराम ने भी अपनी जमीन पर स्ट्रॉबेरी उगाई है। सभी किसानों के पौधों में फल लगने शुरू हो गए हैं। ये किसान अपनी उपज को लोकल हाट-बाजार और हाईवे के किनारे बेचने की योजना बना रहे हैं।

आत्मनिर्भरता का प्रतीक बना या प्रयोग

झाबुआ जिले की यह पहल न केवल कृषि नवाचार का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत की ओर एक ठोस कदम भी है। यह झाबुआ जिले के जनजातीय किसानों ने साबित किया है कि सही मार्गदर्शन, तकनीक और मेहनत से किसी भी क्षेत्र में अपार संभावनाएं पैदा की जा सकती हैं।

आर्थिक और सामाजिक बदलाव की ओर

स्ट्रॉबेरी की खेती से न केवल इन किसानों की आमदनी बढ़ने की उम्मीद है, बल्कि यह दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनेगी। यह पहल झाबुआ जिले के लिए उद्यानिकी खेती का एक नया अध्याय खोलेगी। झाबुआ के जनजातीय किसान सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े बदलाव की ओर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

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Uttam Malviya

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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