लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल) (Sant Siyaram Baba)। मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के कसरावद क्षेत्र में निमाड़ के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा के निधन की खबर ने उनके भक्तों को आज सुबह दुखी कर दिया। बाबा पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। आज शाम को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। सियाराम बाबा की अंत्येष्टी बुधवार शाम को आश्रम के समीप नर्मदा नदी किनारे की जाएगी। उनके निधन की खबर के बाद बड़ी संख्या में भक्तों के आश्रम पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। सीएम मोहन यादव भी बाबा के अंतिम दर्शन के लिए जाएंगे।
12 वर्षों तक मौन धारण किया
संत सियाराम बाबा ने नर्मदा किनारे अपना आश्रम बनाया। उनकी उम्र 100 साल से भी ज्यादा बताई जाती है। बाबा ने बारह वर्षों तक मौन धारण कर रखा था। जो भक्त आश्रम में उनसे मिलने आता है और दान देना चाहता है उनसे वे सिर्फ दस रुपये ही लेते हैं। उस धनराशि का उपयोग भी वे नर्मदा परिक्रमा वासियों की सेवा में लगा देते थे। बाबा ने नर्मदा नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे तपस्या बारह वर्षों तक मौन रहकर की मौन व्रत तोड़ने के बाद उन्होंने पहला शब्द सियाराम कहा तो भक्त उन्हें उसी नाम से पुकारने लगे। हर माह हजारों भक्त उनके आश्रम में देश के कोने -कोने से आते हैं। पिछले दिनों ही उनके निधन की अफवाह फैली थी। प्रशासन ने उस समय ऐसी अफवाहों पर ध्यान न देने की अपील की थी।
क्यों भर्ती हुए थे बाबा
सियाराम बाबा को कुछ दिन पहले निमोनिया की शिकायत के बाद सनावद के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। स्वास्थ्य में सुधार होने के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया था और वह अपने आश्रम वापस आ गए थे।
आश्रम में ही मिल रही थी मेडिकल फेसिलिटी
मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद आश्रम में ही मेडिकल फेसिलिटी उपलब्ध कराई गई थी। मेडिकल कॉलेज इंदौर की टीम ने बाबा के स्वास्थ्य परीक्षण के बाद जो सलाह दी गई है, उसी के मुताबिक उपचार दिया जा रहा था। संत सियाराम बाबा ने आज बुधवार को मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती पर सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर देह त्याग दी। खरगोन के तेली भट्यान स्थित आश्रम से दोपहर तीन बजे उनका डोला निकलेगा और बाबा की अंत्येष्टी शाम को आश्रम के समीप नर्मदा नदी किनारे की जाएगी। संत सियाराम बाबा का आश्रम मध्यप्रदेश में खरगोन जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर भट्यान गांव में नर्मदा किनारे स्थित है।
कड़ाके की ठंड में सिर्फ एक लंगोट
संत बाबा के तन पर कपड़े के नाम पर केवल एक लंगोट होती थी। कड़ाके की ठंड हो, बरसात हो या फिर भीषण गर्मी, बाबा लंगोट के अतिरिक्त कुछ धारण नहीं करते। ग्रामीण बताते हैं कि आज तक उन्होंने बाबा को कभी पूर्ण वस्त्रों में नहीं देखा है। श्रद्धालु बताते हैं कि बाबा 10 सालों तक खड़े होकर तप किया था।
विदेशी भक्त भी पहुंचते हैं
बाबा के दर्शन के लिए, भक्तों के मुताबिक अर्जेंटीना व ऑस्ट्रिया और अमेरीका के कुछ विदेशी लोग पहुंचे। उन्होंने बाबा को 500 रुपए भेंट में दिए। संत ने 10 रुपए प्रसादी के रखकर बाकी लौटा दिए। वे भी आश्चर्यचकित थे। गांव के ही बुजुर्ग बताते है बाबा 50-60 साल पहले यहां आए थे। कुटिया बनाई ओर रहने लगे। हनुमानजी की मूर्ति स्थापित कर सुबह-शाम राम नाम का जप व रामचरित मानस पाठ करते थे।
10 साल की खड़ेश्वरी सिद्धि
भक्त बताते हैं मौसम कोई भी हो बाबा केवल एक लंगोट पहनते थे। उन्होंने 10 साल तक खड़ेश्वरी सिद्धी की थी। इसमें तपस्वी सोने, जागने सहित हर काम खड़े रहकर ही करते थे। खड़ेश्वरी साधना के दौरान नर्मदा में बाढ़ आई। पानी बाबा की नाभि तक पहुंच गया, लेकिन वे अपनी जगह से नहीं हटे।
भक्तों को अपने हाथ से चाय बनाकर देते थे
नर्मदा परिक्रमा वासियों को दाल, चावल, तेल, नमक, मिर्च, कपूर, अगरबत्ती व बत्ती भी देते हैं। जो भी भक्त आश्रम आता था, बाबा अपने हाथों से चाय बनाकर पिलाते थे। कई बार नर्मदा की बाढ़ की वजह से गांव के घर डूब जाते हैं। ग्रामीण ऊंची सुरक्षित जगह चले जाते हैं, लेकिन बाबा अपना आश्रम व मंदिर छोड़कर कहीं नहीं जाते। बाढ़ के दौरान मंदिर में बैठकर रामचरितमानस पाठ करते थे। बाढ़ उतरने पर ग्रामीण उन्हें देखने आते थे तो कहते थे मां नर्मदा आई थी। दर्शन व आशीर्वाद देकर चली गई। मां से क्या डरना, वो तो मैय्या है। वर्तमान में जहाँ बाबा का निवास है वह क्षेत्र डूब में जाने वाला है।
ढाई करोड़ रुपए नागलवाड़ी मदिर में दिए दान
बाबा का आश्रम डूब क्षेत्र में आया तो सरकार ने इन्हें मुआवजे के 2 करोड़ 51 लाख दिए थे, तो इन्होंने सारा पैसा खरगोन के समीप ही ग्राम नांगलवाड़ी में नाग देवता के मंदिर में दान कर दिया ताकि वहां भव्य मंदिर बने और सुविधा मिले। आप लाखों रुपये दान में दो… पर लेते केवल 10 रुपये हैं और रजिस्टर में देने वाले का नाम साथ ही नर्मदा परिक्रमा वालों का खाना और रहने की व्यवस्था कई सालों से अनवरत करते आ रहे थे।