लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल) (Akhadon ka ithas aur uddeshya)। महाकुंभ के शुरू होते ही अखाड़ों की चर्चा शुरू हो जाती है। ऐसे में सहज ही यह उत्सुकता जाग जाती है कि आखिर अखाड़े क्या होते हैं, इनका गठन कैसे हुआ था और इनके गठन का मुख्य उद्देश्य क्या है? आज के इस लेख में हम इसी बारे में विस्तार से जानेंगे।
साधु-संतों के दल या संगठन को अखाड़ा कहा जाता है। शस्त्र विद्या में निपुण साधुओं के दल का गठन आदि शंकराचार्य ने 8 वीं शताब्दी में किया था। इनकी स्थापना का मकसद, धार्मिक कार्यों को बढ़ावा देना और हिंदू सनातन धर्म तथा उसके मानने वालों की रक्षा करना था। आदि शंकराचार्य ने साधु संतों के संगठनों को अखाड़ा नाम दिया।
पहले अखाड़ों की संख्या कम थी, लेकिन समय के साथ इनकी संख्या बढ़ती गई। फिलहाल शैव, वैष्णव और उदासीन पंथों के साधु-संतों के कुल 13 अखाड़े मुख्य रूप से मान्यता प्राप्त हैं। महाकुंभ में यही 13 अखाड़े धर्म ध्वजा लिए खड़े हंै। इनमें शैव संप्रदाय के सात, बैरागी वैष्णव संप्रदाय के तीन और उदासीन संप्रदाय के तीन अखाड़े शामिल हैं।
शैव अखाड़े : शैव संप्रदाय के कुल सात अखाड़े हैं और इनके अनुयायी भगवान शिव की पूजा करते हैं
- महानिर्वाणी अखाड़ा: इस अखाड़े की स्थापना 748 ई. में हुई थी। अखाड़े के इष्टदेव कपिल मुनि हैं। इसका मुख्यालय प्रयागराज (इलाहाबाद) में है।
- निरंजनी अखाड़ा: अखाड़े की स्थापना 903 ई. में हुई थी। मुख्यालय प्रयाग में है। इष्ट देवता भगवान कार्तिकेय हैं। अखाड़े के 70 प्रतिशत साधुओं ने हायर एजुकेशन प्राप्त की है।
- अटल अखाड़ा: आदि शंकराचार्य ने 646 ई. अटल अखाड़ा की स्थापना की थी। अखाड़े का मुख्यालय वाराणसी में है।
- आनंद अखाड़ा: विक्रम संवत के मुताबिक आनंद अखाड़े की स्थापना 856 ई. में बरार में हुई थी। इसका मुख्य केंद्र हरिद्वार में है। इस अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद नहीं है।
- अग्नि अखाड़ा: अखाड़े की स्थापना 8वीं शताब्दी ई. में हुई थी। इनके इष्ट देव गायत्री हैं और मुख्यालय काशी है। इनके सदस्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रह्मचारी, साधु व महामंडलेश्वर शामिल हैं।
- पंचदशनाम जूना अखाड़ा: यह शैव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा है। इसकी स्थापना उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में 1145 में हुई। अखाड़े के इष्ट देव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। मुख्यालय वाराणसी में हैं।
- आवाहन अखाड़ा: इस अखाड़े की स्थापना 547 ई. में आदि शंकराचार्य ने की थी। गजानन दत्तात्रेय इनके इष्ट देवता हैं। इस अखाड़े का मुख्यालय वाराणसी में है।
वैष्णव अखाड़े: यह अखाड़े भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करते हैं, वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़े हैं
- दिगंबर अखाड़ा: माना जाता है कि अखाड़े की स्थापना 500 साल पहले अयोध्या में हुई थी। अखाड़े का मुख्यालय गुजरात के साबरकांठा में है। इनके 450 से ज्यादा मठ और मंदिर हैं।
- निर्मोही अखाड़ा: अखाड़े की स्थापना 14वीं शताब्दी में रामानंदाचार्य ने की थी। यह अखाड़ा वाराणसी में स्थित है। अखाड़े के इष्ट देव हनुमान जी हैं।
- निर्वाणी अखाड़ा: निर्वाणी अखाड़े की स्थापना 748 ई. में हुई थी। इनके देवता भगवान विष्णु हैं। मुख्यालय हनुमान गढ़ी, अयोध्या में है।
उदासीन अखाड़े: अखाड़े के अनुयायी ‘?’ की पूजा करते हैं, उदासीन संप्रदाय के भी तीन अखाड़े हैं
- उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा: इस अखाड़े को 1825 ई. में बसंत पंचमी के दिन हरिद्वार में हर की पौड़ी पर स्थापित किया गया था। प्रमुख आश्रम प्रयागराज में है।
- उदासीन पंचायती नया अखाड़ा: बड़ा उदासीन अखाड़े के संतों से वैचारिक मतभेदों के बाद इस अखाड़े की 1846 स्थापना हुई। इसका प्रमुख केंद्र हरिद्वार के कनखल में है।
- निर्मल अखाड़ा: इस अखाड़े की नींव 1862 में बाबा मेहताब सिंह महाराज रखी थी। इसका संबंध गुरु नानक देव जी से माना जाता है।
महाकुम्भ पर्व की ऐतिहासिकता, उसका नैसर्गिक सौन्दर्य तब तक अपूर्ण माना जाता है, जब तक शैव-वैष्णव संतों एवं इनके अखाड़ों की उपस्थिति न हो। अपनी धार्मिक-आध्यात्मिक परम्परा के अनुसार लाव-लश्कर, हथियार, हाथी-घोड़े व रथों के जुलूस के साथ महाकुम्भ पर्व में स्नान करते हैं, जिसे देखने के लिए देश-दुनिया के लोग खींचे चले आते हैं। महाकुम्भ के महापर्व को संगठित व विराट समागम का रूप देने में महान संत एवं अद्वैत मत के प्रचारक आद्य शंकराचार्य का योगदान अविस्मरणीय है।