MP Minimum Wage: मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ द्वारा 3 दिसंबर 2024 को न्यूनतम वेतन की बढ़ी दरों पर रोक हटाने के बावजूद एक माह बीत जाने के बाद भी राज्य सरकार ने बढ़ी दरों पर भुगतान का आदेश जारी नहीं किया है। इस देरी के विरोध में सीटू के प्रदेश महासचिव प्रमोद प्रधान के निर्देश पर वरिष्ठ अधिवक्ता बाबूलाल नागर ने 6 जनवरी को मध्यप्रदेश के प्रमुख सचिव (श्रम) और श्रमायुक्त को अवमानना नोटिस जारी किया है।
सीटू प्रदेश अध्यक्ष रामविलास गोस्वामी और प्रमोद प्रधान ने सरकार पर मजदूर विरोधी रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह 25 लाख मजदूरों के अधिकारों पर कुठाराघात है। सीटू ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र आदेश जारी नहीं हुए तो मैदानी संघर्ष और कानूनी कार्रवाई की जाएगी। सीटू जिला समिति बैतूल के नेता कुन्दन राजपाल, जिला संयोजक डीके दत्ता, पाथाखेड़ा सीटू अध्यक्ष जगदीश डिगरसे, आंगनवाड़ी यूनियन जिलाध्यक्ष सुनीता, महासचिव पुष्पा वाईकर, ऑटो चालक यूनियन अध्यक्ष मनोहर आठनकर और महासचिव शेख वकील ने भी इस आंदोलन में भागीदारी की घोषणा की है।
यह था यह पूरा मामला
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने न्यूनतम वेतन पर लगाए गए स्टे को खारिज कर दिया था। इस फैसले से मजदूरों को प्रति माह 1800 से 2400 रुपये तक की वेतन वृद्धि का लाभ मिलना है। इसमें विभिन्न कारखानों और सरकारी क्षेत्र में कार्यरत आउटसोर्सिंग कर्मचारी भी शामिल हैं। यह आदेश जारी होने पर सीटू के प्रदेश अध्यक्ष रामविलास गोस्वामी और महासचिव प्रमोद प्रधान ने सरकार और श्रम आयुक्त से मांग की थी कि 1 अप्रैल 2024 से श्रमिकों का एरियर सहित भुगतान भी सुनिश्चित किया जाएँ।
मालिकों ने लिया था स्टे
10 साल बाद वेतन पुनरीक्षण समिति की सिफारिशों के आधार पर अप्रैल 2019 की जगह अप्रैल 2024 से न्यूनतम वेतन लागू करने की घोषणा हुई थी। लेकिन, कुछ कारखाना मालिकों ने इसका विरोध करते हुए हाई कोर्ट में स्टे ले लिया था। सीटू ने इसके खिलाफ पूरे प्रदेश में जिलाधीश और श्रम विभाग के कार्यालयों पर प्रदर्शन किए और इंदौर हाई कोर्ट में मजदूरों की ओर से पक्ष रखा था।
मजदूरों के पक्ष में फैसला
सीटू के अधिवक्ता बाबूलाल नागर ने हाई कोर्ट में मजदूरों का मजबूत पक्ष रखते हुए न्यूनतम वेतन की आवश्यकता पर जोर दिया। इसके बाद न्यायमूर्ति विवेक रुसिया और गजेंद्र सिंह की खंडपीठ ने स्टे को खारिज करते हुए मजदूरों के पक्ष में फैसला सुनाया था। इस फैसले से मजदूरों को प्रति माह 1800 से 2400 रुपये तक की वेतन वृद्धि का लाभ मिलेगा। इसमें विभिन्न कारखानों और सरकारी क्षेत्र में कार्यरत आउटसोर्सिंग कर्मचारी भी शामिल हैं।