Legal advice on cheque bounce: फाइनेंस कंपनी ने कर लिया है वाहन जब्त तो नहीं हो सकती चेक बाउंस की वसूली, देखें क्या कहता है कानून

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भारत सेन, अधिवक्ता (Legal advice on cheque bounce)। फायनेंस कंपनी वाहन ऋण देते समय हायर पर्चेस एग्रीमेंट पर ऋणी के हस्ताक्षर लेती हैं और 06 चैक लेकर रख लेती हैं। कंपनियां वाहन की कीमत का अधिकतम 85 फीसदी फायनेंस करती हैं। ऋण ब्याज की मासिक किश्तों में अदायगी की जाना हैं। अदायगी में चूक पर वाहन जप्त कर लिया जाता हैं। वाहन नीलाम कर दिया जाता हैं। इसके बाद अदालत में चैक बांउस कानून धारा 138 का परिवाद लाखों रुपयों की बकाया रकम के लिए पेश कर दिया जाता हैं।

अक्सर मामलों में आरोपी चैक बांउस कानून का सूचना पत्र का जवाब नहीं देते हैं जो कि घातक होता हैं। मांग सूचना पत्र लेने से इंकार करना घातक होता हैं। चैक बांउस कानून में आरोपी की ओर से पैरवी के अभ्यस्थ अधिवक्ता के माध्यम से मांग सूचना पत्र का जवाब देना चाहिए। कंपनी वाहन को जप्त करती हैं तो एक जप्ती पत्रक ऋणी व्यक्ति को जारी करती हैं। कंपनी के द्वारा जारी समस्त दस्तावेजो को भविष्य के लिए सुरक्षित रखना चाहिए।

फायनेंस कंपनियां चैक बाउंस का मामला पेश करती है तो हायर पर्चेस एग्रीमेंट पेश करने से बचती है। हायर पर्चेस एग्रीमेंट की कुछ शर्तें कानून के विरूद्ध होती हैं। आरोपी अधिवक्ता को इसका अवलोकन करना चाहिए। भारत के सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट का यह न्यायिक मत हैं कि हायर पर्चेस एग्रीमेंट तब निरस्त हो जाता है जब कंपनी के द्वारा वाहन जप्त कर लिया जाता हैं और नीलाम कर दिया जाता है। इसके बाद कंपनी चैक बांउस कानून धारा 138 का मामला अदालत में नहीं चला सकती हैं तो इसका कारण चैक बाउंस कानून की धारा 43 है जिसमें चैक प्रतिफल रहित हो जाता हैं।

इन हालातों में कंपनी अपना बकाया धन अन्य विधिक उपचारो के जरिए वसूल सकती हैं। परिवाद में कंपनी को यह साबित करना आवश्यक हैं कि विधिमान्य ऋण या दायित्व का अस्तित्व है। कंपनी के ऋण खाता स्टेटमेंट में धनराशि का बकाया दिखाई देता हैं लेकिन नीलाम किए गए वाहन से प्राप्त धनराशि का समायोजन दिखाई नहीं देता हैं।

  • सुधा बीबी विरूद्ध केरल राज्य 2004 (1) डीसीआर 420:- मा0 हाई कोर्ट ने धारा 43 परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 पर विचार किया हैं। प्रतिफल रहित लिखत। फायनेंस कंपनी के द्वारा वाहन जप्त कर लिए जाने के एवं ऋण अनुबंध निरस्त होने के बाद क्या धारा 138 का मामला ऋणी व्यक्ति के विरूद्ध चलाया जा सकता हैं? न्यायालय ने न्यायिक मत दिया हैं कि ऋण अनुबंध के अंतर्गत फायनेंस कंपनी ने वाहन जप्त कर नीलाम करने का विकल्प का चयन कर चुकी हैं तो कंपनी बकाया ऋण राशि की वसूली के लिए धारा 138 का परिवाद पत्र प्रस्तुत नहीं कर सकती हैं।
  • डायरेक्टर मारूती फीड्स विरूद्ध बसाना पट्टेकर 2008 (1) डीसीआर 30 में न्यायिक मत दिया गया हैं कि कंपनी अधिनियम में कंपनी एक विधिक व्यक्ति होती हैं किसी भी व्यक्ति को कंपनी के द्वारा प्रतिनिधित्व करने के लिए बोर्ड आफ रिजाल्यूसहशन के जरिए या आर्टिक आफ एसोसिएशन के जरिए न्यायालय में प्रतिधिनिधित्व कर सकता हैं। इस प्रकरण में कंपनी का निदेष द्वारा कंपनी का प्रतिनिधित्व किया जा रहा था लेकिन कंपनी द्वारा जारी बोर्ड आफ रिजाल्यूशन पेश नहीं किया गया था तथा निदेष होने के संबंध में कोई दस्तावेज पेश नहीं थे। परिवाद पत्र निरस्त किया गया।
  • राजकुमार शर्मा विरूद्ध श्रीराम फायनेंस 2015 (1) एमपीएचटी 13: परिवाद कथा इस प्रकार थी कि आरोपी ने परिवादी कंपनी से ऋण प्राप्त कर वाहन क्रय किया था। दोनो के मध्य हायर परर्चेस एग्रीमेंट निष्पादित किया गया था। ऋण राशि की सुरक्षा के बतौर आरोपी ने चैक जारी किया था। मासिक किस्तों की अदायगी में विफल रहने पर चैक के जरिए राशि प्राप्त करना था। फायनेंस कंपनी ने पूर्व सूचित किए बिना ही वाहन को जप्त कर लिया। वाहन को नीलाम कर दिया। इसके बाद चैक अनादरण का मामला पेश कर दिया। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सुधा बीबी विरूद्ध केरल राज्य के मामले में प्रतिपादित न्यायिक सिद्धांत का अवलंबन लिया गया और धारा 43 में परक्राम्य लिखत को प्रतिफल रहित माना हैं। फायनेंसर द्वारा वाहन जप्त कर एक विकल्प का उपयोग कर लिया गया हैं। फायनेंसर के पास एक अन्य विकल्प उपलब्ध हैं कि वह सिविल वाद के जरिए बकाया रकम की वसूली करें। धारा 138 के लिए विधिमान्य ऋण या दायित्व का होना आवश्यक हैं। यदि प्रतिफल से परक्राम्य लिखत समर्थित नहीं हैं तो धारा 138 के प्रावधान आकर्षित नहीं होंगे।
  • मै0 ओईस आटो फायनेंसियल सर्विस लि0 विरू0 राजेन्द्र कुमार व अन्य 2015 (5) लाॅ हेराल्ड 4545: परिवाद कथा इस प्रकार हैं कि परिवादी फायनेंस की सुविधा ग्राहको को उपलब्ध करवाती हैं। आरोपी से चैक प्राप्त किए गए थें। आरोपी 34 मासिक ईएमआई में किश्तें अदा करनी थी जिसमें वह विफल रहा हैं। कंपनी ने वाहन जप्त कर लिया। विचारण न्यायालय ने साक्ष्य का मूल्यांकन करते हुए यह पाया कि जब आरोपी मासिक ईएमआई अदा करने में विफल रहा हैं तो वह 07 लाख 30 हजार 586 रू0 का चैक कैसे जारी कर सकता हैं? अभिलेख पर एैसा कुछ भी नहीं हैं कि जब कंपनी द्वारा वाहन कब्जे में लिया गया और विक्रय कर दिया गया फिर भी धनराषि बकाया थी।
  • बजाज फायनेंस लि0 विरूद्ध पूजा नारायण खेतान 2021 (3) सिविल कोर्ट केसेज 724: परिवाद कथा इस प्रकार हैं कि परिवादी कंपनी ने आरोपी को 01 करोड़ 39 लाख 40 हजार रू0 का ऋण प्रदान किया था। आरोपी मासिक ईएमआई 28 हजार 666 रू अदा करने के लिए सहमत हुआ था। आरोपी ने 04 लाख 31 हजार 664 रू0 का चैक जारी किया था जो कि अपर्याप्त निधि के कारण अनादरित हो गया था। परिवादी साक्षी द्वारा यह स्वीकार किया गया कि उसे ऋण संव्यवहार की कोई जानकारी नहीं हैं। यह स्वीकार किया गया कि रिक्त चैक कंपनी द्वारा सुरक्षा बतौर लिए जाते हैं। यह स्वीकार किया कि ऋण संव्यवहार से संबंधित दस्तावेज अभिलेख पर पेष नहीं किए गए हैं। जब आरोपी यह बचाव लेता हैं कि चैक को सुरक्षा बतौर जारी किया गया था और दुरूपयोग किया गया हैं तब परिवादी पर यह भार अंतरित हो जाता हैं कि वह ठोस एवं विष्वसनीय साक्ष्य के माध्यम से यह प्रमाणित करें विधिमान्य वसूली योग्य राशि का अस्तित्व हैं। जब चैक को सुरक्षा बतौर जारी किया जाता हैं तो उस चैक को विधिमान्य ऋण या दायित्व के उन्मोचन में जारी किया गया नहीं माना जा सकता हैं।
  • प्रवीण कैपिटल प्रा0 लि0 विरूद्ध अबदुल कादिर 2019 कर्नाटक हाई कोर्ट के इस मामले में परिवादी ने यह स्वीकार किया था कि वह ऋण संव्यवहार का साक्षी नहीं हैं। ऋण संव्यवहार का ज्ञान कैसे हुआ परिवाद में नहीं बताया गया था। वाहन को जप्त कर विक्रय कर दिया गया था। जप्तषुदा वाहन के विक्रय के संबंध में कोई दस्तावेज न्यायालय के समक्ष पेष नहीं किए गए थे। परिवादी द्वारा जप्तषुदा वाहन के विक्रय का निष्चित मूल्य दस्तावेजी साक्ष्य से स्थापित नहीं किया गया था। वाहन का जप्तीपूर्व सूचना पत्र अभिलेख पर पेश नहीं किया गया था। यदि परिवादी कंपनी ने वाहन जप्त कर विक्रय कर दिया था तो बकाया राशि में वाहन का विक्रय मूल्य समायोजित कर दिए जाने के बाद बाकया राषि को स्थापित करने में परिवादी विफल रहा है।
  • श्रीराम ट्रांसपोर्ट कंपनी कं0 लि0 विरूद्ध अखिला बानो 2015 एसीडी 376ः – कर्नाटक हाई कोर्ट में आरोपी की दोषमुक्ति के विरूद्ध अपील दाखिल की जाती हैं। विचारण न्यायालय के समक्ष जीपीए के जरिए परिवाद पत्र प्रस्तुत किया जाता हैं। आरोप हैं कि कंपनी ने हायर पर्चेस एग्रीमेंट के जरिए 02 लाख 95 हजार रू0 वाहन क्रय करने हेतु ऋण दिया था। आरोपी ऋण अदायगी में विफल रहीं और 60 ह0 रू0 कंपनी को भुगतान बकाया रह गया। अंततः आरोपी के द्वारा चैक जारी कर दिया गया। न्यायालय ने पाया कि वाहन को हायर पर्चैस क्रय अनुबंध के अधीन क्रय किया गया था जिसे अनुबंध के अधीन जप्त कर लिया गया हैं। परिवादी धारा 138 एनआई एक्ट का सहारा नहीं ले सकता हैं। परिवादी साक्षी ने निदेष के पक्ष में जारी मूल आर्थराईजेषन लेटर पेष नहीं किया हैं जिसके जरिए अधिकृत होकर परिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया था। परिवाद निरस्त कर दिया गया।
  • सरनया विरूद्ध चन्द्रकांता 2015 (1) एनआईजे 104 एससी: इस न्यायदृष्टांत में मा0 सुप्रीम कोर्ट ने कहा हैं कि मांग सूचना पत्र की तामिली धारा 138 एनआई एक्ट के मामलो में प्रमाणित किया जाना एक आवश्यक घटक हैं जिससे अपराध घटित होता हैं।
  • सचिन दुबे विरूद्ध किषोर शर्मा 2019 (4) आरसीआर (क्रि0) 670 में: परिवाद पत्र में अभिवचन का अभाव हैं कि प्रेषित मांग सूचना पत्र अभियुक्त को किस दिनांक को तामिल हुआ था, तामिल हुआ अथवा नहीं हुआ था। परिवाद पत्र के अभिवचनों से यह माना जायेगा कि मांग सूचना पत्र अभियुक्त को तामिल नहीं हुआ था। मांग सूचना प्राप्ति के 15 दिवस के भीतर चैक राशि की अदायगी का आरोपी को अधिकार प्राप्त हैं, विफल होने पर ही परिवादी को धारा 138 एनआई एक्ट के अधीन परिवादी परिवाद पत्र प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र हैं। परिवाद पत्र प्रचलन योग्य नहीं हैं।
  • राकेश धोटे विरूद्ध अख्तर खान दा0 परिवाद क्र0 2416/2015 में परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 142 (ख) में मांग सूचना पत्र की तामिली के 15 दिवस पश्चात् भी यदि आरोपी चैक में वर्णित राषि अदा नहीं करता हैं तो वाद कारण उत्पन्न होता हैं। वाद कारण उत्पन्न होने की दिनांक से एक माह के भीतर प्रस्तुत किया जाना चाहिए। परिवादी द्वारा वाद कारण उत्पन्न होने की दिनांक के पूर्व परिवाद पेष किया जाना स्थापित । परिवाद पत्र अपरिपक्व हैं।
  • प्रकाश फायनेंस विरूद्ध आर0 बाबू 2018 (2) लाॅ क्रि0 419ः- परिवादी ने हायर पर्चेस एग्रीमेंट के जरिए आरोपी को 03 लाख 19 हजार 800 रू0 का ऋण वाहन क्रय हेतु दिया गया था जिसे 28 किश्तों में अदा किया जाना था। किश्तों की अदायगी में चूक हुई। आरोपी ने 02 लाख 60 हजार रू0 का चैक जारी किया गया। यह अभिनिर्धारित हुआ कि हायर पर्चेस एग्रीमेंट में परिवादी द्वारा वाहन जप्त करने एवं विक्रय करने के साथ ही अनुबंध पत्र निरस्त हो चुका था। इसके बाद परिवादी धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 का परिवाद पेष नहीं कर सकता हैं। यदि कोई बाकाया हैे तो बकाया धनराशि के लिए वह अन्य विधिक उपचार ले सकता है।

(Bharat Sen, Advocate, Chamber No. 24, Civil Court BETUL (MP), Mobile- 9827306273)

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Uttam Malviya

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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