अगर आप उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान या हरियाणा जैसे राज्यों में रहते हैं या बकरी पालन का विचार कर रहे हैं, जिसे छगली भी कहते है, तो जमुनापारी बकरी आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है। यह नस्ल अपनी उच्च दुग्ध उत्पादन क्षमता और बढ़िया मांस के लिए जानी जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, जमुनापारी बकरी का दूध कई बीमारियों, विशेष रूप से डेंगू के इलाज में उपयोगी माना जाता है।
दूध उत्पादन क्षमता
जमुनापारी बकरी का मुख्य रूप से पालन दूध उत्पादन के लिए किया जाता है। यह नस्ल उत्तर प्रदेश के मथुरा, इटावा और आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती है। इसकी खासियत यह है कि यह रोज़ाना 2 से 2.5 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है। बिहार समेत कई राज्यों के किसान भी इसका पालन कर सकते हैं, जिससे उन्हें अच्छी कमाई हो सकती है।
कई राज्यों में पालन किया जाता है
उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में जमुनापारी बकरी का बड़े पैमाने पर पालन किया जाता है। खासतौर पर यमुना नदी के आसपास के इलाकों में इसकी संख्या अधिक है। दूध के साथ-साथ मांस उत्पादन के लिए भी यह नस्ल काफी लाभदायक मानी जाती है।
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डेंगू जैसी बीमारियों में फायदेमंद दूध
विशेषज्ञों के अनुसार, जमुनापारी बकरी का दूध कई बीमारियों में लाभदायक होता है। डेंगू के इलाज में इसका विशेष महत्व बताया जाता है। इसके अलावा, इसकी ऊँची कद-काठी और अधिक वजन के कारण विदेशों में भी इसके मांस की काफी माँग रहती है।
बच्चों को जन्म देने की क्षमता और कीमत
सामान्य बकरियों की तुलना में जमुनापारी का वजन अधिक होता है। यह अपने जीवनकाल में 12 से 14 बच्चों को जन्म देने की क्षमता रखती है। इसके दूध का स्वाद भी काफी अच्छा और स्वास्थ्यवर्धक होता है। बकरी पालन संस्थानों में इसे पालने की विशेष ट्रेनिंग भी दी जाती है। बाजार में इसकी कीमत 15,000 से 20,000 रुपये के बीच होती है।