UPSC Success Story: इसमें कोई शक नहीं कि यूपीएससी की परीक्षा दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है। यही कारण है कि माना जाता है कि इस परीक्षा को भरपूर पैसे और अच्छी से अच्छी कोचिंग प्राप्त करने वाले ही क्रैक कर पाते हैं। अधिकांश मौकों पर यह सच भी लगता है, लेकिन कोई मेधावी युवा इसे क्रैक करने का ठान ही ले तो वह अपनी जिद और जुनून से भी इस कठिन परीक्षा को क्रैक कर सकता है।
इसके प्रत्यक्ष प्रमाण उत्तराखंड के हिमांशु गुप्ता (IAS Himanshu Gupta) हैं। एक दिहाड़ी मजदूर पिता के बेटे और खुद कभी चाय बेचने तक का काम करने वाले हिमांशु गुप्ता ने इस बात को एक नहीं बल्कि तीन-तीन बार सच साबित करके दिखाया है। उन्होंने तीन बार यह परीक्षा दी और तीनों ही बार में उनका विभिन्न सेवाओं के लिए चयन हुआ। पहली बार में वे साल 2018 में भारतीय रेलवे यातायात सेवा (IRTS) के लिए चयनित हुए। दूसरी बार में साल 2019 में उनका चयन भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के लिए हुआ और साल 2020 में अपने तीसरे प्रयास में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के लिए चयनित हुए।
फेसबुक पेज ‘ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे’ (Humans of Bombay) के साथ चर्चा में उन्होंने विस्तार से अपने संघर्ष की कहानी शेयर की है। उनकी यह कहानी प्रेरणा देती है कि गरीबी कभी भी सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकती है। बस, अपनी मंजिल तक पहुंचने की जिद और जुनून होना चाहिए। दरअसल, आईएएस हिमांशु गुप्ता का बचपन बेहद गरीबी में कटा। उनके पैरेंट्स स्कूल ड्रॉपआउट है। पिता दिहाड़ी मजदूरी करते थे। वहीं आजीविका चलाने के लिए वे चाय का ठेला भी लगाते थे। यह बात अलग है कि उन्होंने पढ़ाई का महत्व समझा और बेटे की पढ़ाई के साथ समझौता नहीं किया।
‘ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे’ को अपनी कहानी सुनाते हुए उन्होंने बताया कि वे स्कूल जाने से पहले और बाद में पिता के साथ काम करते थे। उनका स्कूल 35 किलोमीटर दूर था। आना-जाना कुल 70 किलोमीटर हो जाता था। वे एक वैन से स्कूल जाते थे। स्कूल में किसी को पता न चले, इसलिए उनके सहपाठी चाय के ठेले के पास से गुजरते तो वे छिप जाते। लेकिन, एक बार किसी ने उन्हें देख ही लिया और मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। उन्हें चायवाला कहा जाने लगा। हालांकि उन्होंने इन सब बातों पर ध्यान देने के बजाय अपनी पढ़ाई पर फोकस किया। रोजाना वे करीब 400 रुपये कमा लेते थे।
हिमांशु बताते हैं कि उनके सपने बड़े थे। वे एक शहर में रहने और अपने तथा अपने परिवार के लिए बेहतर जीवन बनाने के सपने देखते थे। पापा अक्सर कहते थे कि सपने सच करने हैं तो पढ़ाई करों। उन्होंने यही किया। उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी। इसलिए अंग्रेजी मूवी की डीवीडी खरीदते थे और उन्हें अंग्रेजी सीखने के लिए देखते थे। आखिरकार उनकी मेहनत ने रंग लाया और तीनों ही बार में सफलता प्राप्त करते हुए अंत में वे आईएएस रूपी अपनी मंजिल तक पहुंच ही गए।